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Amit Chauhan

Abstract

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Amit Chauhan

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मैं और मेरा हुनर

मैं और मेरा हुनर

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मै और मेरा हुनर कभी कभी-कभी एसी बातें करते हैं 

मै उसे कहता, "तुम नहीं होते तो मेरा जीवन कैसा होता !"

यह माना मैने कि जिदगी तो गुजरती , 

मगर कैसे!....

कुत्ते की तरह दरबदर भटकना पडता

और बिल्ली की तरह चूहे की तलाश में 

इधर उधर देखना पडता

मुझ में तुम नही होते तो क्या मैं 

स्मार्ट फोन का इस्तेमाल कर पाता!

बाएं हाथ पर स्मार्ट वोच पहनने की अभी ख्वाहिश है;

तो क्या मैं उसे पूरी कर सकूँगा यदि तुम न होते !

अगर तुम मुझ में नहीं होते तो क्या मैं 

महोल्ले में खडे हुए युवाओं के साथ खडा रह सकता! 

मैं और मेरा हुनर  कभी कभी एसी बातें करते है

जब जब हमारी बातें खत्म होती है तो 

येसु का चहेरा मेरे सामने आता है

और मै उनका शुक्रिया अदा करता हूँ 

क्योंकि यह हुनर उनकी ही तो बदौलत है।



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