Mai गीत लिखूं या पत्र उसे
Mai गीत लिखूं या पत्र उसे
मैं गीत लिखूं या पत्र उसे कोई उसे बस समझाना।
जैसा लिखूं वैसा ही ठीक उसे समझाना।
माफी का अधिकार नहीं बस एक झलक तुम मुस्काना।
सुबह सवेरे तेजस्विनी तुम मेरे घर छा जाना।
कांप कांप कर आवाज़ मेरी तुम्हें पुकारें आ जाना।
जब तक ना हो हृदय शांत 'सावित्री' तुम सत्य वचन निभाना।
आंख भिगोने लगूं फिर भी तुम जरा तरस ना खाना।
काली बन स्त्री रौद्र रूप तुम दिख लाना।
दण्ड रूपी वियोग मिला ,अब रहा प्राण का उड़ जाना।
प्रतीक्षा करूं सदैव तुम्हारी,'अदिति ' भावी में रह जाएगा बस पछताना |
हो संभव तो लिखूं तुम्हे , अर्धांगिनी अब बस शांत रूप दिख लाना।
मैं गीत लिखूं या पत्र उसे, कोई उसे बस समझाना।