STORYMIRROR

Gaurav Shukla

Abstract Inspirational

3  

Gaurav Shukla

Abstract Inspirational

माया

माया

1 min
344

मुक्त,

प्रचंड मोह अधिमाया,

माया रूपी रंग समाया....

गुरुवर ज्ञान...होय अधिकाया,

गर्व, घमंड तब बदले साया...

जग बैरी, जब मैं मद आया...

व्यक्ति निशाचर तब कहलाया...

दुःख, दरिद्र का मानक नाही...

संतुष्टि मन अतिसुख पाया...

लोभ, विलास जब पनपे मन में,

तब विनाश ने आश्रय पाया...

है प्रभु जो दीन बसा,

जो पहचाने न अति पछताया..

जब घटे न प्यास धरा की,

तब घटा ने जल बरसाया..

बने मनुष्य आतुरता मन से,

है भक्ति की भूखी काया..

हे दयावर दीनबन्धु,

हम सब का आशय तुम पर आया,

ज्ञान, बुद्धि के ज्ञानी-दाता,

करो मार्ग प्रशस्त हमारा,

तुम्हारी शरण में है हम आये,

दो सतबुद्धि जैसे तरुवर छाया...


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract