मातृ दिवस पर गीतिका
मातृ दिवस पर गीतिका
गोदी में ले आँचल से ढक,हर पल छाया करती थी।
दुनिया के कष्टों से मुझको, सदा बचाया करती थी।।1
मुझे सुलाने आती थी जब,भूल थकावट रातों में,
मधुर मधुर वाणी में प्यारी ,लोरी गाया करती थी।।2
साँझ ढले जब देरी होती ,मुझको घर पर आने में,
व्याकुल सी वह द्वारे पर से ,हाँक लगाया करती थी।।3
डाँट लगाती जब गलती पर, ऐसा मैंने देखा है,
उसके बाद बैठ कोने में,अश्रु बहाया करती थी।।4
पास बैठती जब भी माँ तो,छलक पड़े उसकी ममता,
हाथ फेर कर सिर पर मेरे, लाड़ जताया करती थी।।5
भरी दुपहरी चूल्हा फूंके,सभी उँगलियाँ जल जातीं,
बड़े प्रेम से बैठी भोजन ,नित्य बनाया करती थी।।6
पल्लू सिर पर लेकर चलती,कर लेती थी वह घूँघट,
देख बड़े बूढ़ों को हरदम, खूब लजाया करती थी।।7
