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दयाल शरण

Abstract

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दयाल शरण

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मातृ-भाषा

मातृ-भाषा

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बड़ी उम्मीदों से, 'गूँ-गां',

बचपन, किया करता है, 

मां से कुछ मांगता है

कहता है, समझ जाया करो.


सूने माथे पे, अजीब-सी

खामोशियों की दस्तक है

रोली, चावल का

कोई तिलक लगाया करो.


घर के कोनों में, चुप-चाप

कहां बैठे हो

दिल मे हलचल है

तो इसे शब्दों में तैराया करो.


तंग भाषा पे, इतना रंज 

क्यूँ किया करते हो,

जिसमे सक्षम हैं

वहीं हाथ आजमाया करो.



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