मासूमियत
मासूमियत
जाने कब बड़े हो गये
पता भी न चला
दिन पर दिन मासूमियत
खोती चली गयी
जब भी कुछ नया सिखाया
जिन्दगी ने
समझदारी कुछ कुछ
बढ़ती चली गयी
पीछे मुड़कर जब देखा जो
जिन्दगी को
प्यारी सी इक मुस्कान
आ गई लबों पर
पर चलना तो है आगे
समझदारी की राह पर
पथरीली राह पर हम भी
पथरीले हो चले
लगता है दिल की मिठास
खोती सी जा रही है
अपने ही अहम के आगे
,मरती सी जा रही है
लौटा दे कोई अपने
मासूमियत के दिन अब भी
शायद सुधर जाये क्योकिं
"दिल तो बच्चा है जी"
वरना जिन्दगी तो हर पल
सिखाती ही जा रही है
मासूमियत को परे
हटाती ही जा रही है
जाने कब बड़े हो गये
पता भी न चला
दिन पर दिन मासूमियत
खोती ही जा रही है...