मासूम बचपन
मासूम बचपन
बोझ से अनभिज्ञ,
मासूम, बचपन को रखो,
उम्मीद की चादर में,
उसको मत लपेटो!
यातना इतना न दो..
उस फूल को,
खिल न पाये,
और वह मुरझा,
भी जाये,
जो न पाया,
स्वयं जीवन के,
सफर में,
पर्वत शिखर,
वो है तुम्हारा..
तुम हीं ढोवो,
पेड़ की नाज़ुक,
टहनियों से अभी,
भूल कर ऐ मनुज,
तुम इतना न खेलो,
नंबरों की होड़ में,
शामिल न होवो,
पत्थरों पे भूलकर,
अमृत न बोवो,
सब जानते,
सबको विदित,
कब? फूल खिलना,
लिखा है,
तय है सदा,
कब, क्या है मिलना,
कब्र की चादर,
तुम अपनी,
तन में लपेटो,
बचपन को निर्विघ्न,
छोड़ दो!
मत उम्मीदों में समेटो,
इतना न उसको रौंद दो,
वह टूट जाये,
घड़ा जो अमृत भरा,
वह फूट जाय,
सिसकियाँ तुमको न,
सोने देंगी तब,
स्वप्न में पापा कहेगा!
आके जब?
नव वृक्ष को तुम खाद दो,
पानी पिला दो,
उत्कृष्ट है!
परवरिश कर ,
उसको जिला दो,
उसका अगर,अस्तित्व है,
तुम भी रहोगे,
प्रेम से वह पिताजी,
तुम बेटा कहोगे!
उम्मीद और ये आसरा,
तो खेल है,
सब चकित हैं?
अधिकांश: यहाँ..
फेल हैं,
प्रकृति ने सबको,
अलग सौगात दी है,
सफलता कुछ को,
अधिक को मात दी है,
अब चलो जो है मिला,
उसको समेटो,
बचपन तो, मासूम है,
छोड़ दो,
मत व्यर्थ के,
उम्मीद में, उसको लपेटो!!