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Bhawana Raizada

Abstract Tragedy Inspirational

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Bhawana Raizada

Abstract Tragedy Inspirational

मानवता कहीं खो सी गयी

मानवता कहीं खो सी गयी

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जाने किस ओर चली है जिंदगी

अंजानी राह, बेपरवाह बेखुदी। 

जानवरों से भी गयी गुजरी

मानवता कहीं खो सी गयी। 


माता पिता का त्याग त्यागा

पाऊँ छूना दूर हाथ भी छूटा। 

मन स्वार्थ पराकाष्ठा तक चली

मानवता कहीं खो सी गयी। 


प्रेम भाव द्वेष में परिवर्तित

ज़िम्मेदारी से मुँह मोड़कर। 

अपनी कुटिया की खुशियाँ जुड़ी

मानवता कहीं खो सी गयी। 


भूला आशीष, अरमाँ बरसों के

जिसने समझी तोतली भाषा भी। 

उसी के भावों को भुला गयी

मानवता कहीं खो सी गयी। 


जाने किस ओर चली है जिंदगी

अंजानी राह, बेपरवाह बेखुदी। 

जानवरों से भी गयी गुजरी

मानवता कहीं खो सी गयी। 


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