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GOPAL RAM DANSENA

Abstract Inspirational

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GOPAL RAM DANSENA

Abstract Inspirational

मानव

मानव

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प्रकृति में खेला प्रकृति में सोया

प्रकृति से बिछड़ते धर धर रोया I

ब्रम्हांड को मापता मन दानव है I

अधम, नरोत्तम दोनों ही मानव है I


दो पाटों से बना जीवन चक्की

एक स्थिर एक की प्रगति पक्की

ऊपर ऊपर की वो सब खा जाए

नीचे नीचे ही रहे और कुम्भलाए I


बूंद जब बना ओंस से बादल

बरस गया वो बन कर काजल

एक ले मजे का सैर- सपाटा

दूसरा बादल संग आंसू बांटा


दर दर भटका आशा लेकर

अपने तृष्णा को दिलासा देकर

मन उड़ा ठाट जल रहा है

एक जीवन काठ सा जल रहा है I


ये मानव कहाँ दर है तेरा

कांटों के बीच घर है तेरा

कैसे चलेगा फ़ूलों पर तू

कर परिवर्तन उसूलों पर तू।


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