माँ
माँ
माँ होती है तब,
याद ना आती है,
जब माँ नहीं होती है,
तब बहुत ज्यादा याद आती है ।
आंखें हमेशा क्यों भर आता है,
दिल हमेशा क्यों सहम जाता है,
क्यों दूसरे लोगों में अपनी माँ
की तलाश दिल करता है,
क्यों दिल दिमाग रोज-रोज
उनके बारे में सोचता है ?
और सोचने को मजबूर करता है,
फिर भी माँ के गम मे दिल रोता है ।
सोचता हूं की दोस्त पर कभी माँ ना होने पर,
मैं हंसता था, क्यों आज मैं आंखें ना मिला पाता हूं,
रात में चैन से ना सो पाता हूं,
चीख-चीख कर माँ -माँ चिल्लाता हूं ।
जब माँ का नाम कोई लेता है,
तब माँ की यादें में खो जाता हूं,
पागल सा हो जाता हूं ,
बेचैन सा भी हो जाता हूं,
घबरा सा भी जाता हूं।
सोचता हूं कि माँ बिना क्या जीना है,
जीना भी यह जीना कैसा,
खट्टी-मीठी यादें आती है,
तब हाथ डगमगा जाती है,
माँ , माँ , माँ दिल कहता है ।
लोगों से दिल क्यों डरता है,
कमरे में बंद करके माँ की तस्वीर देखता हूं,
और माँ की यादों में खो जाता हूं,
उसे भुला ना पाता हूं ।।
-----------------------------------------------प्रीतम कश्यप------------------------------------------------