मां
मां
एक मां की दृढ़ता की साक्षी
की गवाही देती है मेरी जिंदगी की कहानी,
आज मेरी शारीरिक कमजोरी नहीं
पहचान है मेरी लेखनी,
यह क्या कभी संभव होता
अगर मां हाथ नहीं पकड़ती ?
समाज ने तो उन पर भी सवाल उठाया होगा
पर उन्होंने अपने साथ मुझे भी
समाज की कठिन सवालों के लिए तैयार किया,
सच कहूं तो शारीरिक रूप से प्रतिबंधित होना
आधुनिक जमाने में भी दर्दनाक है,
लोग मूफ्त का ज्ञान देकर पीठ-पीछे मजाक उड़ाते
पर मेरी मां ने मुझे अखबारों और किताबों की दुनिया
से रुबरू कराया और उच्च शिक्षा के सफर में साथ दिया,
सबसे महत्वपूर्ण बात घर के काम भी सीखाया
ताकि किसी के दया की पात्र न बनकर
सम्मान की हकदार बनीं रहूं,
हां मैं अपनी मां की आभारी हूं।