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Simran Sardana

Abstract Classics Inspirational

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Simran Sardana

Abstract Classics Inspirational

माँ

माँ

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माँ

ओ माँ


माँ तुझसे प्यार सीखा है मैंने

माँ तुझसे प्यार सीखा है मैंने

तबसे जबसे

तूने मुझे देखा भी न था


तुझसे प्यार सीखा है मैंने

तब से

जब से तुझे देखा भी न था

तबसे जब पहली बार

तेरी आवाज़ सुनी थी

तबसे जब पहली बार तुझमें

खुद को महसूस किया था

तबसे जब पहली बार

तेरे स्पर्श का एहसास हुआ था

तेरी कोख में


ओ माँ

तुझसे प्यार सीखा है मैंने

तबसे जब से

तुझे देखा भी ना था

पर मालुम हो चूका था 

तू जन्मेगी मुझे

तू जन्म देगी मुझे और

इस हस्ती खेलती दौड़ती

भागती दुनिया में

आने का

एक सुनहरा मौका देगी मुझे


माँ

ओ माँ

तुझसे प्यार हो चूका था

जब तुझे पहली बार देख था

है रोये तो हम दोनों ही थे

उस शनिवार की सुबह

पीड़ा में जो थे बहुत

पर माँ ?

तूने जब छुआ था न मुझे

पहली बार


माँ तूने

जब छुआ था मुझे पहली बार

जब सीने से लगाया था मुझे

माँ जब सीने से लगाया था न तूने मुझे

तब उसी क्षण मुझे

एहसास हो चूका था की

तू

मेरी माँ नहीं

मेरी जन्मदाता नहीं

बल्कि माँ

मेरी देवी है

भगवान् है मेरा


तेरे साथ रही हु न जो मैं इतने साल

हम दोनों ने एक दूजे को

देखा है हर रूप में

हस्ता खेलता रोटा बिलखता

बचपन जवानी


हां मैं जानती हु मेरे दूर जाने

के ख्याल से ही

डर जाती है

सेहम भी जाती है

और शायद रो भी देती है

पर वो देख

तेरी भी तो माँ साथ बैठी है

तेरे पास

हम सबके साथ

इतना भी थोड़ी दूर जाता है कोई भला


ओ मेरी माँ ?

साथ रहेगी न मेरे ?

साथ देगी न मेरा ?

है कहती नहीं मैं ज़्यादा

प्यार की बोली किसी के सामने

पर इस कविता के द्वारा

सुन ले ना मेरी भी तो ?


माँ

ओ मेरी माँ ?

प्यार से आज भी एक निवाला रोटी का

खिला देगी न मुझे ?

और माँ ?

मेरी माँ


फिर से खुद को प्यार करना सीख जायेगी ना ?

जैसे अपनी इस नन्ही सी जान को सिखाया है ?


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