मां
मां
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जिंदगी अगर धूप है तो गहरी छाँव है मां।
धरा पर जन्मदात्री भगवान का स्वरूप है मां।
पग पग पर हर खुशी लुटाती जगत जननी है मां।
सबको खुशी देकर,हर गम सह लेती है मां।
तन मन से स्त्रीत्व की रक्षक, वात्सल्य की मूर्त है मां।
लम्हा लम्हा जीना सीखती,देव स्वरूपी सूरत है मां।
बदलते स्वरूप मौसम, सुनहरी बंसत है मां।
सहती स्वयं धूप, लुटाती गहरी छांव है मां।
पल पल दुःख सहती, दूसरो पर सुत्सना है मां।
सौहार्द मधुरिम भावमय आलोकित, गुरु वंदना है मां।
जब तक चलेगी जिंदगी की सांसें, ख लुटाती है मां।
तम नाशक गुरु ज्ञान सा,दीपक ज्यो
मां की ममता में आत्मीयता का भाव मिलेगा।
कहीं मिलेगी सच्चे मन से दुआ तो,
कहीं प्यार भरा मां का आंचल मिलेगा।
कहीं बनेंगे पराये रिश्ते अपने तो,
कहीं मां का वात्सल्य सा प्रभाव मिलेगा।
जब होती मासुयित संतान के चेहरे पर तो,
तब मां के चेहरे पर दुलार मिलेगा।
जब कहीं होगी खुशामदे चेहरों पर तो,
मां के जहान में अपनत्व का सैलाब मिलेगा।
जब होता है खिंचाव अपने पराये रिश्तों का,
तब मां की पुकार में अपनेपन का अहसास मिलेगा।
तू चलाचल राही अपने कर्म पथ पे,
मां के चरणों में तुझे भगवान मिलेगा।