माँ पर कविता
माँ पर कविता
लिख डालूँ माँ पर कविता मुझ में ये सामर्थ्य नहीं
साथ अगर वो मेरे हो तो होता कभी अनर्थ नहीं
जो जीवन में माँ की सेवा अगर कहीं मैं कर पाया
तो हँसकर लिख सकता हूँ जीवन मेरा व्यर्थ नहीं
भले महल हो पास तुम्हारे लम्बी लम्बी गाड़ी हो
अगर नहीं है माँ जो संग तो जीवन में उत्कर्ष नहीं
अगर मिली जो माँ की दुआएँ तो मैं ये कह सकता
धरती से लेकर अम्बर तक पाना कुछ असमर्थ नहीं
भले हो बीबी सबसे अच्छी बच्चे हो आज्ञाकारी
अगर कहीं माँ वृद्धा आश्रम तो जीवन मे हर्ष नहीं
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में जाने से कुछ न होगा
माता पिता से बढ़ के धरती पे होता कोई दर्श नहीं
अगर कही माँ के दिल को तूने ऋषभ दुखाया तो
बंशीधर की इस पूजा का रहता कोई अर्थ नहीं
