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Anasree Chatterjee

Abstract Tragedy

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Anasree Chatterjee

Abstract Tragedy

माँ ओ मेरी माँ।।

माँ ओ मेरी माँ।।

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कभी-कभी सोचती हूँ

क्या कशिश, बाकी छूट गई थी ?

क्या मेरे नियत में खोट था ?

क्या मैं मेहनत करने से चूक गई ?

हुआ क्या माँ जो तुम मुझसे छूट गई ।।


माँ तकलीफ हो रही हैं मुझे तुम्हारे बिना

सब सुना सुना सा लगता हैं

सब बरबाद सा लगता हैं

मन नहीं कुछ भी करने का

एक दम अकेला सा लगता हैं ।।


कितनी कोशिश करती हूं

फिर भी बस तुम्हारी कमी महसूस होती हैं

ये कैसा अदभुत सा खेल हैं जीवन का माँ

जो मौत से भी डरावनी होती हैं ।।


वो खूबसूरत बड़ी बड़ी आँखे तुम्हारी

बे वक़्त हमारी चिंता करती थी

वो साँसे, वो हँसी, वो बातें

जो बस हमसे जुड़ी होती थी

कहाँ खो गई सब कुछ माँ

जो मुझे तुमसे जोड़ा करती थी।।


कैसा समझाऊँ खुदको माँ की

अब ज़िंदगी तुम्हारे बिना गुज़ारनी हैं

कैसा समझाऊँ खुदको माँ की

अब तुम्हारी डाट की आवाज़ नही आणि हैं

कैसे समझाऊँ खुदको माँ की

अब तुम्हारी लोरी की धुन नहीं गुनगुनयेगी

शांन्ति से स्थिर लेटी हो जो

तुम माँ अब कैसे तुमको जागूँगी।।


सब सुना करके चली गई जो तुम

माँ तुमसे अलग न हो पाउंगी

वादा रहा तुमसे माँ अगले जन्म

फिर से तुम्हारी बेटी बनकर आउंगी।।



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