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Shweta Maurya

Abstract Classics Inspirational

4.8  

Shweta Maurya

Abstract Classics Inspirational

माँ किस जंग कि सिपइया

माँ किस जंग कि सिपइया

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माँ देखा है मैंने पल-पल अपने सपने हारते तुझको,

अपनों को जीताने को।

जीत जायेंगे एक दिन बच्चे,

खुशी पा जायेंगे बच्चे,

यह सोच मन झूमते देखा है तेरा।


हर रोज हमारे भविष्य की सिपइया,

बनते देखा है तुझको।

हर रोज जूझते देखा है मैंने,

सुबह नाश्ते से ले कर रात्रि तक,

हम बच्चों की क्षमता को निखारने की

कोशिश में देखा है तुझको,

पापा को अपने कर्तव्य पथ पर चलने में, 

सहायता करते देखा है तुझको,

माँ तू किस-किस के जंग की सिपइया,


नहीं कोई परिवार तुझे अछूता,

 है हर घर में एक माँ,

जो बनी परिवार के जंग की सिपइया,

नहीं कोई ऐसा जो जीत जाए जीवन की जंग तेरे बिन।


बहुत बड़ा, अमूल्य योगदान है तेरा,

कैसे भूलूं अपने जीवन की जंग,

जिसमें साथ पाया तुझको हमेशा।

जब-जब लड़खड़ाई,

पकड़ अंगुली राह दिखलाई,

जब-जब की मांग,

पूरी की हर इच्छा।


भूल जाती है तू सारी समस्या,

जब देना हो समाधान कोई,

हालातों के आगे जब शांत जुबां होती तेरी,

मुस्कुरा कर परिस्थितियों को सकारात्मक बना देती हो।


पापा की मित्र बन हर जंग जीताने को ठानी जो तूने,

हम बच्चों में भी आत्मविश्वास भर डाला,

हम सब की हर जंग जीतने को तत्पर होते देखा है तुझको,

माँ तुझे किस-किस के कर्म पथ की

जंग की सिपइया बनते देखा है मैंने।


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