माँ हंस वाहिनी मुझको ऐसा 'वर'
माँ हंस वाहिनी मुझको ऐसा 'वर'
माँ हंस वाहिनी मुझको ऐसा 'वर' दे।
मैं कविता कहानी लिखूँ गीत जुबानी लिखूँ।
आज के समाज से संस्कार की रवानी लिखूँ।
भूख से तड़पते मानव की जिंदगानी लिखूँ।।
माँ हंस वाहिनी मुझको ऐसा 'वर' दे।
सभ्य समाज की कटघरे में गलत बयानी लिखूँ।
रोजगार मांगते युवा की ब्यथा बानी लिखूँ।
न्याय के लिए भटकते इंसान की परेशानी लिखूँ।।
माँ हंस वाहिनी मुझको ऐसा 'वर' दे।
मैंं जन्मदाता की करूण कहानी लिखूँ।
दहेज में जलती बिटिया सयानी लिखूँ।
अपने वतन से लोंगो की नमक हरामी लिखूँ।।
माँ हंस वाहिनी मुझको ऐसा 'वर' दे।
सत्ता के मद में लोगों की मनमानी लिखूँ।
मानवता के मंच पर लोगों की हैवानी लिखूँ।
बारूद के बखार की दुनिया दिवानी लिखूँ।।
माँ हंस वाहिनी मुझको ऐसा 'वर' दे।
बढ़ती मंहगाई से जनता की परेशानी लिखूं।
गरीबी से लड़ते बचपन की आंख का पानी लिखूं।
झूठ का बखान करते मनुज की विज्ञापन वाणी लिखूं।।