माँ गरीब कहाँ होती है
माँ गरीब कहाँ होती है
दुआओं से भरे आँचल को ओढ़
टाँकती है,
मन्नतों के चाँद सितारे
अपने दुपट्टे पर,
फिर ढाँपकर उसमें अपने बच्चों को
किंचित निंश्चित सी हो जाती माँ।
रसोई के खाली पड़े मर्तबानों और पतीलों में
लबालब भरी होती है उसकी
ममता....
"मुझे भूख नहीं"
"तू अच्छे से खा ले"
फुसलाकर, पुचकारकर
पेट भर खिलाना जानती है
माँ गरीब कहाँ होती है ?
दुआओं की दौलत जो है बेशुमार
कमजोर सी, कृशकाय माँ ...
सबसे दबकर, बच बचाकर
जीवन बोझा ढोती माँ।
गर, बुरी आँँख नौनिहालों पर कोई डाले
चील सा झपट्टा मारती,
तो कभी शेरनी सी बन जाती माँ...
"हालातों से समझौता कभी नहीं,
आपदाओं को लाँघकर आगे बढ़ो "
ये पाठ पढ़ाती....
माँ गरीब कहाँ होती है ?
दुआओं की दौलत जो है बेशुमार
दुनिया की इतनी बड़ी भीड़ में,
जिम्मेदारियों के भारी मुकुट तले,
टिकी रहती हैं उसकी आँखें
अपने बच्चे पर,
वो महफूज है कि नहीं !
किसने 'मनहूस' कह दिया ?
"तू तो मेरी आँखों का तारा है,
मेरा राजदुलारा है।"
जड़ देती एक मीठा सा चुंबन और
लगाकर एक काला टीका
सारी बलाएँ हर लेती है माँ।
मातृत्व के नसीब से रौशन....
माँ गरीब कहाँ होती है ?
दुआओं की दौलत जो है बेशुमार।