माँ दुर्गा का रूप निराला
माँ दुर्गा का रूप निराला
या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।*
*नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।*
!! भगवती सरूपा मां ब्रह्मचारिणी सकल चराचर जगत कौ मंगल करे।
जगजननी मां भगवती, के नव रूप विशेष!
पूरन करि मानकामना, काटें भव के क्लेस!!
ब्रह्मचारिणी मातु कौ, जो धरते उर ध्यान!
साधक पामें सिद्धियां, होत सहज कल्यान!!
माँ दुर्गा के नौ रुप मनोहर
असुरों के नाशक,दुखःहारी।
नौ रुपों में रुप दूसरा, सब जाने है
"ब्रह्मचारिणी माँ "को जग माने है।
माँ करती कल्याण जगत का,
कष्ट मिटा सबके दुख हरतीं।
सुख -सम्पत्ति देती भक्त कों
सुखकर जीवन सबका करती।।
आनंदित जीवन रहे सदा मनुज की,
माँ औषधि बन कर भी प्रकट हुयीं।
"ब्राह्मी"औषधि बनींआयुर्वेद की
स्मृति -बर्धक रुप में प्रसिद्ध हुई।
"ब्राह्मी" ही है जो रक्त शुद्ध कर
"कंठ-स्वर"को भी मधुर बनाती है।
यह माँ का ही है तो प्रकट रुप है
जो सर्व आरोग्य संपदा दाती है।।
ऋतुयों के इस संधिकाल में हम जो
नव-रात्रि में शक्तिसाधना करते हैं।
प्रतिरोधक क्षमता उनकी बढ़ती है।
साधक शक्ति के जो खुद बनते हैं।
आचार शुद्ध हो, विचार शुद्ध हो।
साधना तभी सफलता पाती है।
कलुष-भाव जब मिटता जीवन से
तब ममता माँ की मिल जाती है।।
जगदम्बे माँ अम्बे !को हम साधक
भक्ति-भाव से शीश झुकाते है।
मिलता सबको माँ का वरद-हस्त
मनवांछित फल भी सब पाते है।।