माँ धरती
माँ धरती
माँ, तू मेरी है पहचान,
तेरा वासी हूँ मैं, यही मेरा नाम।
मिट्टी की सुगंध ने तेरी सिखाया है मुझे चलाना,
तेरे आँचल ने गढ़ा है मेरा ताना-बाना।
मेरा आहार है तेरी हरियाली का अनाज,
अन्न की शक्ति से बना मेरे तन-मन का आज।
तेरा अमृत-जल, तेरा फल-फूल सुहाना,
तेरी गोद में बनी मेरी।दुनिया, मेरा ज़माना।
तेरी नदियों में मैं करता हूँ अमृत स्नान,
निर्मल जल का संगीत गाता नए गान।
हर पतझड़, हर बसंत की किरण देती मन को बहला,
तेरा मौन आकाश बना है मेरा गुरु पहला पहला,
तारों की चमक में छुपा है ब्रह्मांड का स्वर,
हवाओं की लहरों में पाता हूँ मैं प्रेम अक्सर।
तेरी जड़ी-बूटियाँ अमृत, तेरी सुंदरता तेरी शान,
तेरे स्पर्श से जाना ताप, शीतल और मधुर गान।
जब पाँव रखता हूँ तेरी धरती की मिट्टी पर,
पाता हूँ ऋतुओं का नृत्य, पाता हूँ मै अपना घर।
तेरी गहरी गोद बनती है मेरी सलाहकार,
बादलों की बरसात, पाया मैंने अपना राही-पथ।
पेड़ों की छाँव, फूलों की खुशबू मिली है तेरे साथ,
तूने चलना सिखाया, पग-पग पर था तेरा हाथ।
माँ धरती, तेरी ममता ने सँवारा मेरा जीवन-पथ,
तेरे अनंत प्रेम को करता हूँ नमन शत-शत।
मेरी रगों में बसा है तेरा ही रूप साकार,
कृतज्ञ हृदय से धन्यवाद है तुझे बारम्बार।
पर अब तू रोती है, कटते पेड़ों के नीचे,
तेरे आँचल को अब प्लास्टिक है नीचे।
तू सहनशील है, पर तू है कितनी पीड़ित,
तू माँ असीम है, हम बच्चे लेकिन सीमित।
अब समय है, तुझको कुछ लौटाने का,
संरक्षण का संकल्प, नई पीढ़ी को सिखाने का।
कम करें प्रदूषण, पेड़ लगाएँ हर साल,
जल बचाएँ, मृदा को दें उर्वर हर हाल।
हरियाली को बनाएं फिर से हम श्रृंगार,
तभी मिलेगा धरती माँ को भविष्य का आधार।
