मां और मैं
मां और मैं
मां ! मैं तुम सी और तुम मुझ सी।
सब कहते हैं
बहुत मिलती है मेरी और तुम्हारी हंसी
पहले मै सोचा करती थी
कुछ छूट गया तुम्हारे आंगन में
पर मां बनकर अब लगता है
मैं सब ले आई थी मन ही मन में
तुम्हारा लहजा तुम्हारा व्यक्तित्व
पता ही न चला कब बन गया मेरा अस्तित्व
तुम तुम हो मैं हूं मैं
पर इस मै तुम में
कब आया हम
पता ही न चला ,
चाहती हूं हर जन्म में तुम ही बनना मां
पर एक जन्म में तुम बेटी बन जाना हां !
किया है जितना प्यार कुछ तो वापस ले जाना !