लफ्ज़ दर्द के
लफ्ज़ दर्द के
वह खुश थी पर शायद हमसे नहीं,
वह नाराज थी पर शायद हमसे नहीं,
कौन कहता है उनके दिल में
मोहब्बत नहीं,
मोहब्बत तो थी पर शायद हमसे नहीं।
और इस तरह,
मेरी मोहब्बत बेजुबान होती रही
दिल की धड़कनें अपना वजूद खोती रही
दुख में मेरे करीब आया कोई नहीं
एक बारिश थी जो मेरे साथ रोती रही।
ना जाने मेरे मौत कैसी होगी
लेकिन यह तो तय है कि तेरी
बेवफ़ाई से तो बेहतर होगी।
शुक्र करो हम दर्द सहते हैं
लिखते नहीं,
वरना लफ्जों की जनाज़े कागज़
पर उठ जाते।