लोक व्यवहार नेग रिवाज़
लोक व्यवहार नेग रिवाज़
जग की रीति न जानू
लोक-लाज न जानूं ।
जो है मन में बोल दिया,
लाज का घूंघट खोल दिया।
न समझा क्या होगा असर,
सबकुछ सबमें तोल दिया।।
नेग चार क्या न जानूं
लोक-लाज न जानूं ।
लोक-व्यवहार कुछ सीखा नहीं,
रीति-रिवाज कुछ सीखा नहीं।
तरूणाई सी बगिया में,
प्रेम भाव सा सरीखा नहीं।।
मन-भाव जनों का न जानूं
लोक-लाज न जानूं ।
