लोभ
लोभ
ना भय है ना शर्म है,
बस छुपा-छुपा एक गूढ़-सा रहस्य हूँ,
कई प्रपंच हैं इस जीवन के मंच पर,
कहीं सत्ता तो कहीं विलास,
हर भोग की आश से,
अमर हूँ मैं, अजेय हूँ मैं,
मैं लोभ हूँ ।।
कभी आडम्बर तो कभी प्रत्यक्ष,
बसा हूँ अक्स-अक्स में,
ना कोई रोका ना कभी टोका,
बल से भी ज्यादा और,
छल से भी उपर,
मैं लोभ हूँ,
हाँ मैं लोभ हूँ,
अमर हूँ मैं, अजेय हूँ मैं,
मैं लोभ हूँ ।।
रचा है ऐसा चक्रव्यूह,
सदी-सदी रहूँगा मैं,
अर्जुन यहाँ कोई नहीं,
अभिमन्यु बन मरोगे तुम,
अभेद हूँ, मृत्यु से परे हूँ मैं,
मैं लोभ हूँ,
हाँ मैं लोभ हूँ ।।
