लम्हा
लम्हा
जब भी मुलाक़ात होंगी
कुछ पल जेब में रख लूँगा
कभी न ख़र्च होने के लिए
वो मेरी पर्स में पड़े होंगे
लकी सिक्कों की तरह
जो हालात बिगड़ने पे भी
यहीँ उम्मीद जलाए रखेगें
कि अब भी क़िस्मत
बदलेंगी
अब भी तुम आओगे
ज़रूरी हैं न
वादा जो हैं सांस तक
देखना ये जेब मेरी
यादों से तेरे यू भरता रहूँगा
एक दिन अमीर बहुत अमीर
हो जाऊँगा
बस तुम वो ख़ास सिक्के
मुलाकातों पे लेके आते रहना।