लक्ष्य पथ
लक्ष्य पथ
लक्ष्य पथ पर बढ़ तू मुसाफ़िर
लक्ष्य पथ पर चलता जा
हर संघर्ष को करके पार
विजय पताका फहराता जा।
बिना धरती पर गिरे कहो
नवजात कहीं चल सकता है ?
बिना प्रयास किए कहो
क्या कोई सफल हो सकता है ?
बिना नर्क से गुजरे कहो
क्या स्वर्ग का सुख मिल सकता है ?
बिना विष को चखे कभी
अमृत का स्वाद पता चलता है।
पर्वत शिखर पर चढ़ने से पहले
तलहटी से कदम बढ़ाना होगा
अनंत ऊँचाइयों को छूने से पहले
गहराइयों में उतरना होगा।
ज़मीन से उठकर जो बढ़ता है
सफलता के सोपान वही चढ़ता है
कुदरत का नियम कुछ ऐसा है
जो चढ़ता है वही गिरता है
जो गिरता है वही उठता है।
चलो, उठो निराशा छोड़ो
मन में दृढ़ संकल्प और आशा भर लो
अपने भीतर की शक्ति को पहचानो
लक्ष्य पथ पर बढ़ने की ठानो।
मंज़िल भी उसी को मिलती है
जो कदम से कदम बढ़ाता रहे
ठोकरों से गिरे, फिर सँभले
चलता और बस चलता ही रहे।
चलने का नाम ही जीवन है
बढ़ने का नाम ही जीवन है
जब धारा बहती रहती है
वह निर्मल कहलाती है।
जब धारा रुक जाती है
वह गंदली हो जाती है
नव उमंग की डोर पकड़कर
अपने सपनों को पंख लगाओ
प्रचंड ऊर्जा और पुरुषार्थ के साथ
लक्ष्य पथ पर बढ़ते ही जाओ।