मातृभूमि की कसम
मातृभूमि की कसम
मातृभूमि की कसम
मातृभूमि की कसम
हम इसकी तिलक लगाते हैं
और यह कसम खाते हैं,
कि अन्याय को दम तक तोड़ेंगे
न्याय से मुँह नहीं मोड़ेंगे।
आज क्या रह गई है भारत की शान ?
भाई - भाई लड़ रहे और किसान
है भ्रष्टाचार का बोलबाला
मानवता का मुँह है आज काला।
अब चलें गरीबों की जिंदगी की ओर
जिनकी गरीबी का न कोई ओर न छोर,
दिनभर पसीना बहाते हैं
तभी रात को आधा पेट खाते हैं,
गरीबों के बाल - बच्चे
शिक्षा के बिना रह जाते हैं अधूरे - कच्चे,
ये मानव हैं सबसे पीछे
इनमें जागृत इक्के - दूजे।
यह है अमीरों का स्थल
भेद - भाव का जन्मस्थल,
ये हैं मानवता के नाई
ऊँच - नीच की यहीं है खाई,
मोटरकार है इनके आगे पीछे
सभी समझते ये मानव हैं सबसे ऊँचे,
ये करते हैं स्वयं का पोषण
गरीबों का करते हैं शोषण।
स्वदेश प्रेम करो तुम भी भाई
गरीबों को समझो अपना भाई,
ईश्वर रखा है सबको पाल
करता सबकी वही देखभाल,
आखिर सबको आना ही है
एक - एक करके जाना ही है,
पुनः तिरंगा तुम फहराओ
स्वर्ण धरा को स्वर्ग बनाओ।
इस युग में पूर्ण स्वतंत्रता लाओ
मानवता का मान बढ़ाओ,
भारत का तुम भाग्य जगाओ
भारतीयता तुम सर्वत्र लाओ,
आए हो तो कर्ज चुकाओ
मातृभूमि को पुनः सजाओ,
आज तुम यह कसम खाओ ।
आज तुम यह कसम खाओ ।।
