लकीरें
लकीरें
आज स्वप्न में आया मेरे,
नक्शा मेरे देश का।
उग रहीं थीं फसलें विचारों की,
नक्शे की रेखाओं के अंदर।
पक रहे थे बहुत खुशियों के फल भी।
खिल रहे थे इंसानी फूल, बहुत खूबसूरत।
चट्टानों सा तना था नक्शे का शरीर,
कहीं एक दिल भी धड़क रहा था, नक्शे के बीच में।
मैं मुस्कुरा दिया, स्वप्न में ही।
और, स्वप्न टूटता इससे पहले दिखाई देने लगीं मुझे,
नक्शे की लकीरों के अंदर कितनी ही छोटी और लकीरें।
सब लुप्त हो गया, बचीं केवल वे लकीरें।
आखिर, स्वप्न देखे जाते हैं अंधेरे में ही तो,
तभी तो मेरे स्वप्न में थीं,
सिर्फ अंधेरे की लकीरें।