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Chandresh Kumar Chhatlani

Abstract

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Chandresh Kumar Chhatlani

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बीमार

बीमार

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शहरों ने छेड़ दी है जिहाद - बीमार होने की

एक-एक कर नाम आ रहा है अपराधियों की लिस्ट में। 

यूं तो शहर खुद भी परेशां हैं,

क्योंकि शहरों के ज़ख़्म,

बागों के बागी हो जाने पे हरे ही रह गए। 

बागों के भी क्या कहने!

वे कहने को कहते कि जडों की जद में है सिर्फ ज़हरीला पानी। 

मैं भी एक सच कहूँ! 

पानी पी रहा है ज़हर को,

क्योंकि हम इंसानों को अपने गले तर करने के लिए

चाहिए वो सब - जो आ जाता है - 

हमारे गलों तक। 



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