लिखने वाले ने लिख दी तकदीर
लिखने वाले ने लिख दी तकदीर
लिखने वाले ने तो लिख दी हमारी तकदीर,
दे दी इस बंद मुट्ठी में चंद लकीरें
माना तकदीर बनाना तेरे हाथ में नहीं है,
तद्बीर तो तेरे हाथ में है ‘मेरे दोस्त’।
‘उठ खोल इस मुट्ठी को चीर दे
अपनी इन लकीरों को ढूँढ ले, खुले हाथों से
अपने मुकाम पर पहुँचने के लिये
उन रास्तों को,चंद लकीरों को न बनने दे।
अपने मज़बूत इरादों की वजह,
अगर हौसला बुलंद हो,
इरादा हो मज़बूत तकदीर भी अपनी राह बदल,
चंद लकीरों को भी मात दे देती है।
उठ, हिम्मत कर, बदल दे
लिखने वाले ने जो लिखा है
हौसला बुलन्द रख,
लिख दे अपने ही हाथों अपनी तकदीर।