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Bhawna Kukreti Pandey

Abstract

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Bhawna Kukreti Pandey

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लिखना और मौत

लिखना और मौत

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लिखना

एक थेरेपी भी होती है 

ये मुझे लिखते-लिखते

पता लगा। 


मैंने मृत्यु के बारे में 

जितना लिखना चाहा

उतना ही सोचा भी

और उतना ही उसको

रचनाओं में जिया भी

और ऐसे कुछ हद तक

शायद उसको समझ भी ।


अब मौत मुझे

मुस्कराती सी अबोध बच्ची लगती है 

जिसे किसी " चुके " समय मेरे तन की दुकान से

कोई हिस्सा, कोई अंग नही, कोई चाह नहीं

सिर्फ उसमे फंसी आत्मा चाहिए होगी।


भला किसी अबोध को

आज तक कोई मना कर सका है क्या ?


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