लेना है लोहा !
लेना है लोहा !
जिन्दगी के सफर में
चलते हुए आड़े आते हैं
जाने कितने रोड़े !
कहीं किसी राह पर
मिलता है सूखा
कहीं पर सबकुछ -
तहस-नहस ,,,,,,
कर देती है बाढ़ !
कहीं ,,,,,,
खेल खेलती है जिन्दगी
कहीं ,,,,,,,
हो जाता है खिलवाड़
बस इन्हीं राहों से होकर
गुजरता है रथ जीवन का
चलते-चलते ,,,,,
कहीं मिल जाते हैं गढ्ढ़े
कहीं आ जाते हैं पहाड़
तब जीना भी
हो जाता है दुश्वार
आज ऐसी ही
इक राह है करोना की
जहां पल-पल होता है
खिलवाड़ जिन्दगी से
है आज तकाज़ा वक्त का -
जमकर इससे लेना है लोहा
इस नामुराद कमबख्त
कोरोना को है भगाना !
