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Krishna Khatri

Abstract

3  

Krishna Khatri

Abstract

लेना है लोहा !

लेना है लोहा !

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जिन्दगी के सफर में 

चलते हुए आड़े आते हैं 

जाने कितने रोड़े !

कहीं किसी राह पर 

मिलता है सूखा 

कहीं पर सबकुछ -

तहस-नहस ,,,,,,

कर देती है बाढ़ !

कहीं ,,,,,,

खेल खेलती है जिन्दगी

कहीं ,,,,,,,

हो जाता है खिलवाड़ 

बस इन्हीं राहों से होकर

गुजरता है रथ जीवन का

चलते-चलते ,,,,,

कहीं मिल जाते हैं गढ्ढ़े

कहीं आ जाते हैं पहाड़

तब जीना भी 

हो जाता है दुश्वार

आज ऐसी ही 

इक राह है करोना की 

जहां पल-पल होता है 

खिलवाड़ जिन्दगी से 

है आज तकाज़ा वक्त का -

जमकर इससे लेना है लोहा

इस नामुराद कमबख्त 

कोरोना को है भगाना !


       





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