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Kavi Dilip Kushwah

Romance

5.0  

Kavi Dilip Kushwah

Romance

लेकर हम जलता चराग चले हैं

लेकर हम जलता चराग चले हैं

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लेकर हम जलता चराग चले हैं ।

रोशनी से बचे अंधेरों से छले हैं ।


खुशबू अपनी दूर तक बिखेरते हैं ।

जो फूल बागबां के साए में पले है ।


बुझकर भी चिताओ में आग बाकी रही ।

देखे हमने प्यार में ऐसे भी दिलजले है ।


दौर ए जवानी में ख्वाहिशे जाग गई ।

ये दिल के बीमार भी अजब मनचले है ।


कत्थई आंख की पलकों में कशिश देखी ।

उठे तो सुबह चले झुके तो शाम ढले हैं ।


गुलाब जैसा मासूम दिल है उसका ।

खिलूं और बिखरु ऐसे सपने पले हैं ।


गर उसे छूकर हवा भी गुजर जाए ।

तो देखा है हवाओं की रंगत बदले हैं ।


मुमकिन नहीं तेरा संभलना अब ऐ राज ।

इश्क के नहले पर हुस्न के दहले हैं ।



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