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कत्थई आंख की पलकों में कशिश देखी । उठे तो सुबह चले झुके तो शाम ढले हैं । कत्थई आंख की पलकों में कशिश देखी । उठे तो सुबह चले झुके तो शाम ढले हैं ।
इस तरह आते रहे जीवन में उतार-चढ़ाव। इस तरह आते रहे जीवन में उतार-चढ़ाव।