लब्ज
लब्ज
जो बयाँ ना हुए थे वो
मेरी थी खता सनम
बिन तेरे अब रहना हमें
न आए मेरे हमदम
ये कैसी उदासी है छाई
तेरे नाम से हुई दूर तन्हाई
कैसे कहें के हम अब
नहीं सह सकते ये जुदाई
ना कोई बता सके ये दर्द
कोई लब्ज ही नहीं रहें
कोई बता भी दे हमें के
हम इस तरह कैसै रहें।