लांसनायक हेमराज का विजयरथ
लांसनायक हेमराज का विजयरथ
उस दिवाली मेरे भी गाँव एक रोज दुःखों का सैलाब आया,
जब एक वीर का बेटा तिरंगे में लिपटा घर को आया,
रिश्ता कुछ भी नहीं, फिर भी हर कोई रो रहा था,
जब वो वतन का रखवाला तिरंगा में लिपटा सो रहा था।
वर्षा तो पुष्प की हो रही थी,
पर लाल को अपने छाती से लगाये धरती भी आज रो रही थी।
जब पूरा गाँव करुणामय हो रहा था,
उस बेटे का बाप कही छिपा रो रहा था,
सब कुछ खो चुकी माँ भी बेसुध सी पड़ी वही रो रही थी,
रोती होश में आती फिर बेसुध हो रही थी।
पिता को भी अब रहा न गया,
अन्तर्मन की पीड़ा को सहा न गया,
वो भी फुट फुट कर रोने लगा,
'हेमराज' उठ जाओ कहकर बेसुध होने लगा।
बेजान सी खड़ी बहन भी बिफर कर रो रही थी,
मत रो 'पिताजी' कहकर खुद बेसुध हो रही थी।
पत्नी भी माँ के पास बदहवास सी पड़ी रो रही थी,
कभी चूड़ियाँ तोड़ती, तो कभी सिन्दूर पोछती,
कभी सुध खोती, तो कभी होश में आती, बस अपने
बच्चे को कलेजे से लगाये रो रही थी।
गाज सी गिरी आज उस घर पर,
सपने सारे बिखर गए।
पुत्र, पिता, पति, भाई 'हेमराज' तुम
हम सब को तन्हा कर चले गए।
अब अंतिम रस्म की बेला आ रही थी,
उठो 'हेमराज' कह कह कर माँ तो
बस रोये जा रही थी,
कल तक थी सुहागन जो,
आज अभागन हो रही थी,
भाई का विजय तिलक करने वाली वो बहन,
आज अंतिम यात्रा में शरीक हो रही थी।
पिता भी शायद यह सोच कर व्याकुल हो रहा था,
की कल तक जो काँधे पर खेला,
आज काँधे पर जायेगा,
कैसा अभागा बाप हूँ मैं,
जो बेटे की माटी का बोझ उठाएगा।
कल तक जिसे मेले में घुमाया,
आज शमशान ले जाना है,
दुनिया को मौत आ जाती है भगवन,
क्या मेरा नहीं ठिकाना है?
इतने में सेज सज गयी उस योद्धा की,
उसपर उसे लिटाया गया,
फिर कफ़न, पुष्प, सीतारामी और तिरंगे से,
उस शहीद को सजाया गया।
सैलाब उमड़ रहा था आँखों में,
फिर भी "भारत माता की जय" का उदघोष हुआ।
अब तक पिता ने भी कुछ हद तक खुद को
संभाल लिया था,
परिस्थिति तो विषम थी ही, फिर भी कुछ
कुछ खुद को ढाल लिया था।
शमशान ले जाने को शहीद उठाया गया,
बड़े आहिस्ते से पिता के कंधे तक लाया गया,
बदहवास पिता अब और भी ज्यादा रो रहा था,
क्योंकि, बेटे के शव का भार कंधे से
ज्यादा छाती पे महसूस हो रहा था।
फिर एक सज्जन ने ढाढस बंधवाया,
शहीदों के विजयरथ पर रोया नहीं करते,
आँसू पोछते हुए उनके उन्हें यह समझया।
फिर रुंधे गले से सबने हुंकार भरी,
भारत माँ की जय जयकार करी।
फिर "राम नाम सत्य है" का गान हुआ,
शव का शमशान प्रस्थान हुआ।
हजारों का हुजूम पीछे जा रहा था,
जो देखता 'विजयरथ' को वही पीछे आ रहा था।
शव को शमशान तक लाया गया,
सब बंधन खोल गंगा स्नान कराया गया,
चिता की सामग्री लायी गयी,
फिर अंतिम सेज सजाई गई।
और चिता को अग्नि लगाई गई।