क्यों यह आग लगाओगे
क्यों यह आग लगाओगे
क्यों जंगल-जंगल जलते हैं ?
क्यों लोक-अमंगल करते हैं ?
क्यों हरियाली ये दहक उठी ?
क्यों देवभूमि ये धधक उठी ?
फिर क्यों दस्यु बन जाते हो ?
क्यों घर से बेघर करते हो ?
क्यों साँसे तुम हर लेते हो ?
फिर क्यों यह आग लगाते हो ?
तुम खगकुल का रोदन सुन लो
रोदन में दर्दभरी आहट सुन लो
चूजों का नीडों से क्रंदन सुनलो
उस निराकार परब्रह्म से डर लो
क्या नीर-समीर बिना रहलोगे ?
बिन ठंडी छाँव, आतप सहलोगे
क्या मंद-सुंगध-चंदन छू लोगे ?
फिर क्यों तुम आग लगाते हो ?
हे गर्वित, कुण्ठित, दम्भी मानव!
हरी जमीं देती फल सुखदायक
संभल जरा! न बन अधिनायक
संवर्द्धन कर ले ! बन जा नायक
क्षिति जल पावक गगन समीरा
सो पञ्च-तत्व हैं अतिबलवीरा
कवि "रौशन" कहे संदेश हमारा
जो जंगल फूँके, हो नाश तिहारा।