क्या तेरा क्या मेरा!
क्या तेरा क्या मेरा!
चाहत भी तुम, शिकायत भी तुम
आराधना भी तुम, साधना भी तुम
ठहराव भी तुम, परिवर्तन भी तुम
बाहर भी तुम, अंदर भी तुम
ढूंढे नहीं मिलती
कोई विभेद रेखा
क्या तेरा, क्या मेरा !
मेरे लिए
दिन भी तुम्ही से रात भी तुम्ही से
आस भी तुम्ही से विश्वास भी तुम्ही से
जमीन भी तुम हो आसमान भी तुम हो
मंजिल भी तुम हो रास्ता भी तुम हो
नहीं मिलता
अलग वजूद
क्या तेरा, क्या मेरा !
मैं दीपक तुम लौ हो
मैं नदिया तुम धार हो
मैं वीणा तुम सुर हो
मैं बिम्ब तुम प्रतिबिम्ब हो
मेरे रोम रोम में व्याप्त हो
कैसे अलग करूँ
क्या तेरा, क्या मेरा !
दीपक से प्रकाश को
फूल से खुशबू को
पानी से शीतलता को
मन से भाव को
अच्छा लगता है
ख्वाहिशों का अधूरापन
उलझन भी वही
अवलम्ब भी वही
उद्देश्य भी वही
रार अब एक नई ठानूँगा
तुझे अपना ही मानूँगा
मेरा सब है तेरा
और तू है मेरा
कहानी खतम
क्या तेरा , क्या मेरा !!