क्या हम आजाद हैं ?
क्या हम आजाद हैं ?
क्या हम आजाद हैं ?
एक सवाल मेरा खुद से हैं।
नहीं अभी डर से
आज़ादी नहीं मिली।
हमें अभी भी आज़ादी चाहिए
हमें आज़ादी चाहिए उस डर से
जो रात में एक अकेली लड़की को
घर आते समय लगता है।
हमें आज़ादी चाहिए उस डर से
जो एक माँ को अपनी
नन्ही गुड़िया को
अकेले छोड़ते वक्त लगता हैं।
हमें आज़ादी चाहिए उस डर से
जो एक आम नागरिक
कश्मीर जाते वक्त लगता है।
हमें आज़ादी चाहिए
उन अख़बार की खबरों से
जो रोज सुबह बताती है कि
एक और आशिफा का
बचपन मिट चुका हैं।
हमें आज़ादी चाहिए
न्यूज चैनल पर
आती उस ख़बर से
जिसमें यह दिखाया जाता है
कि आज एक और निर्भया
हैवानियत की शिकार हो गई।
हमें आज़ादी चाहिए
मुजफ्फरपुर और देवरिया जैसे उन
तमाम शेल्टर होम से
जो मासूम लड़कियों की
जिंदगी को नर्क बना रहे हैं।
हमें आज़ादी चाहिए
उस छोटी सोच से
जो धर्म के नाम पर
इंसानियत को काट रही हैं।
हमें आजादी चाहिए
ऐसी गंदी राजनीति से,
जो सियासत के नाम पर
देश बाँट रही है।