क्या है प्रेम
क्या है प्रेम
प्रेम गलत नहीं प्रेम तो खुला आसमां है,
प्रेम में राधाकृष्ण की छवि बसती,
प्रेम मे मीरा सी सादगी बहती,
प्रेम में रूक्मिणी सी धैर्य शक्ति होती,
प्रेम आंखों में आसूं लाता तो एक चमक भी दिखती,
प्रेम त्याग है तो एक तपस्या भी,
प्रेम की परिभाषा विभिन्न है,
प्रेम एक विश्वास है,
प्रेम में रूक्मिणी सा इंतजार है,
प्रेम में राधा सा विश्वास है,
प्रेम में मीरा सा पागलपन है,
प्रेम किया तो आंखों में दिखने दो,
प्रेम है तो उसको बेशुमार बहने दो,
प्रेम है तो सृष्टि का अस्तित्व है,
प्रेम में हीर रांझा सी कुर्बानी है,
प्रेम की एक अनोखी कहानी है,
प्रेम जिंदगी है प्रेम नशा है,
प्रेम एक अहसास है,
प्रेम का अपना अलग महत्व है,
जिसने किया वो समझता प्रेम आखिर है क्या।