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क्या चर्चा करूँ प्रेमी

क्या चर्चा करूँ प्रेमी

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पता नहीं वाग्जाल आ-आकर

रुक जाते क्यों लबो पर मेरे

क्या चर्चा करूँ प्रेमी तुमसे

तुम हो भरम के बाड़े।


इस गुफ़्तगू की निशा में

जाने क्यों गुमसुम रहा हूँ ?

इस दरमियान में कितना

क़हर भरा दरवेश रहा हूँ

ऊँघते नैनों में कब तक

विकल हुए कल्प धनेरे

क्या चर्चा करूँ प्रेमी तुमसे

तुम हो भरम के बाड़े।


मिले तार ह्रदय- बीन के तो

सुर संसार में द्यतिमय हो जायें

हर्ष- विषाद का मानस लिखकर

उसमें हम लीन हो जायें

सुरभित हों जीवन तुम्हारा ,

पराये बने संगी तेरे।

क्या चर्चा करूँ प्रेमी तुमसे

तुम हो भरम के बाड़े।


मुझे अभिलाषा बनूँ शायर औ

तुम्हें अर्पित हो जाऊँ

गा दो जो तुम

तुम्हारे होंठों पे

सीमित हो जाऊँ

उत्प्रेरित हो असंख्य

रूप रंग तेरे,

मन-मुकुर में मेरे

क्या चर्चा करूँ प्रेमी तुमसे

तुम हो भरम के बाड़े।


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