कविता
कविता
न सोचा न समझा
न देखा न भाला
क्या वक्त है
क्या अंधेरा उजाला
कोरे कागज़ को देखा
तो दिल तिलमिलाया
कलम हाथ आई ,बस लिख डाला
लफ्जों के मोती कुछ ऐसे परोए
कागज़ पे दिल का हाल लिख डाला
कैसा है पगला यह दिल दीवाना
ख्वाबों का इक आशियाना बनाया
कहां था छिपा यह हुनर अब तलक
है किस मुकाम पर न जान पाया
बचपन ,लड़कपन,जवानी गई
बुढ़ापे में कलम को ही
बस हमराज पाया
हम उम्र साथी मिले जब
लिखने के जज्बे का हौंसला बढ़ाया
सलामत रहें यारों की महफिलें
यारों से रोशन हुई जिंदगानी
कभी चोट खाई थी कदम कदम पर
यारों ने प्यार का मरहम लगाया
खुशियां ही खुशियां अब दामन में मेरे
हर पल को जीने का मकसद बनाया
आज अतीत को इस कद्र भुलाया
वर्तमान से अपने भविष्य का
मजबूत स्तंभ बनाया।
