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Anita Mandilwar

Abstract

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Anita Mandilwar

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कविता तुम कहाँ हो

कविता तुम कहाँ हो

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कविता

तुम कहाँ हो

कवि के हृदय में

या कागज के पन्नों पर

या मन की संवेदना में

या ऊष्मित होती वेदना में

या बालाओं के रूदन में

या उद्वेगों के क्रन्दन में ।

बताओ हो किसी के

स्मृतियों में

या नायिकाओं के विरहगान में

या छिपी हो सुर-ताल में

या उलझी हो समुद्र के

भँवर-जाल में ।

बताओ तो छिपी कहाँ

सुंदर सूरत में

या अच्छी सीरत में

या फिर चरित्र में

आखिर कहो तो

हो बसती किसमें ।

कहीं छिपी तो नहीं

सैनिकों के ललकार में

या मल्लाह के पतवार मे

या नदी के बीच मझधार में

या आन्दोलन से उपजे

हाहाकार में ।

कहाँ हो कविता

शब्दों के ताने-बाने में

या कही गई जो बात

अनजाने में

पनघट पर पनिहारन के

गुनगुनाने में

या रंगीन परों वाली तितलियों के

उड़ जाने में ।

कहाँ हो कविता

आखिर हो कहाँ

मुझे तो लगता है

तुम हर जगह हो

हर किसी का सपना हो

या हो किसी के सपनों में ।

हाँ तुम हो

वन की हरियाली में

पर्वत, पहाड़ में

कलकल करती झरने में

और हो कण-कण में

जहाँ प्राण शेष है

अभी भी

हाँ ! अभी भी ।


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