कविता..शर संधान
कविता..शर संधान
कविता
शर संधान
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पत्थर को मोम बनाए हम,
हर बाधा का सम्मान करें।
बस लक्ष्य नजर में हो केवल,
शर, सोच समझ संधान करें।
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जिनके शर राहों से भटकें,
वे छोड़ दें तीरंदाजी को।
हरगिज वे जीत न पाएंगे,
इस हार जीत की बाजी को।
हैं लक्ष्य अचूक नहीं जिनके,
क्या उन्हें मंजिलें वरती हैं।
जो सतत परिश्रम करते हैं,
मंजिलें उन्हीं से डरती हैं।
है बहुत जरूरी इसीलिए,
हम अपना सुख बलिदान करें।
बस लक्ष्य नजर में हो केवल,
शर, सोच समझ संधान करें।
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आदर्श बनाएं अर्जुन को,
मछली की आंख नजर आये।
न पेड़ दिखे ना पात कोई,
आंखों में लक्ष्य फकत छाये।
सोते जगते बस मकसद के,
पीछे तत्परताएं दौड़ें।
हों लाख भ्रमित करने वाले,
मकसद को तनिक नहीं छोडें।
जब तक न करें हासिल मकसद,
हम मकसद का ही ध्यान करें।
बस लक्ष्य नजर में हो केवल,
शर, सोच समझ संधान करें।
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जो फैल परीक्षा में होते,
वे चलकर भी कब चलते हैं।
घानी के बैल बने रहते,
वे खुद अपने को छलते हैं।
चल चल के थकते रहते हैं,
ना कहीं पहुँचने पाते हैं।
वे शुरु जहाँ से करते हैं,
फिर घूम वहीं आ जाते हैं।
न हो अपनी मेहनत जाया
हम सही सही अनुमान करें।
बस लक्ष्य नजर में हो केवल,
शर,सोच समझ संधान करें।
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अख्तर अली शाह "अनंत"नीमच