कविता का शीर्षक- हिंदी दिवस।
कविता का शीर्षक- हिंदी दिवस।
चौदह सितम्बर दिन है आया, राष्ट्र ने हिंदी दिवस मनाया।
उन्नीस सौ तिरेपन हुआ शुरू, भारत बना फिर विश्व गुरु।।
उन्नीस सौ उनचास था महान, संविधान सभा इसकी जान।
राजभाषा पहचान मिली जब, राष्ट्रभाषा कहलाएगी कब।।
उन्नीस सौ चौहत्तर बड़ी कथा, दस जनवरी की सुनो व्यथा।
विश्व हिंदी दिवस किया लेखन, नागपुर में विश्व हिंदी सम्मेलन।।
भाषाओं की संस्कृत है जननी, मूल बाईस भाषा अब बननी।
सात सौ अस्सी हैं देश में बोली, एक सौ बाईस भाषा हो लीं।।
अनठावन भाषा स्कूल में पढ़ते, हिंदी को फिर प्यार से गढ़ते।
केटुम्भ नहीं यह शतम शाखा है, राष्ट्रभाषा की सबको आशा है।।
प्राकृत-संस्कृत की प्रपौत्री हिंदी, पालि-अपभ्रंश जिसकी जननी।
विभाव अनुभाव संचारी भाव है, अवहट्ट से जिसका अविर्भाव है।।
काव्य छन्दों में जब शब्द पिरोते, मात्रिक वर्णिक वृत्त मुक्त बताते।
शब्दों को भी संक्षिप्त किया है, छह समास का नाम लिया है।
सात अलंकार से पंक्ति सजाते, काव्य की शोभा जो हैं बढ़ाते।।
ग्यारह भावों का आनंद रस से, अनुभूति की उत्पत्ति कब से।
हिंदी हमें यह सब है बतलाती, व्याकरण भी है सिखलाती।।
भारत की अब जान है हिंदी, संस्कृति का इनाम है हिंदी।
हिंदुस्तान की तो शान है हिंदी, संस्कारों का ईमान है हिंदी।।
दुनिया का अभिमान है हिंदी, हम सब की पहचान है हिंदी।
ईश्वर का शुभाशीष है हिंदी, गुरुओं का आशीष है हिंदी।।
बोल चाल में मन को भाती, सुहृदय स्पर्शी बड़ी सुहाती।
तुम व आप में फर्क बताती, अपनों का है बोध कराती।।
वात्सल्य हमजोली जिसकी, ममता मयी है बोली इसकी।
बड़ों को है सम्मान दिलाती, अनुजों का स्नेह दिखाती।।
सदा सत्कार दिखा करता है, आदर भाव भी बना रहता है।
विशाल हिंदी मान शिरोधार्य है, जिसका प्रचार प्रमुख कार्य है।।