कविता :- बन्ना
कविता :- बन्ना
बन्ना कितने रंगीन रंग है तेरे
लिपटने के लिए तुझसे तरसते है अंग-अंग मेरे
बन्ना कभी भाल पे बन्ना कभी गाल पे
मैं हो जावुं बन्ना कि बन्नों हर हाल में
बन्ना बन्ना रंग तेरे लगे लगे मुझे मेरे
नीले नीले चंचल तेरे आंचल के तले
प्यार मेरा पिंकीश पिंकीश
तेरी येलो येलो भावनाएं में पले फुलें
केशरी केशरी भाल से मेरी
सदा करता रहता है जो उजाले
बन्ना कभी भाल पे बन्ना कभी गाल पे
मैं हो जावुं बन्ना कि बन्नों हर हाल में
सफेदी बन्नों कि प्रेम की ढाल रे
अंधेरा बन्नों पे लगे है बवाल रे
गुलाबों सा प्रिय बन्नों के साथ हर साल हैं
लाल लाल खतरे जैसै बन्नों कमाल तेरे
हरी हरी तेरी शीतलता में
तपकिर जलाये प्रेम के दिये
बन्ना कभी भाल पे बन्ना कभी गाल पे
मैं हो जावुं बन्नों की हर हाल में।