कुदरत का खेल
कुदरत का खेल


बूंद बूंद पानी की बरसने लगी,
मिट्टी के मिलन को तरसने लगी,
ये कैसा जुनून है ये कैसी लगन,
पानी के सिने में लगी है अगन,
ये क्या अजूबा ये कैसी है आस,
मिटटी को पाने की पानी को है प्यास,
मिट्टी में मिलके हो जायेगी गुमसुम,
हवा में घुलके फिरसे बरसेगी रुमझुम,
मिलना बिछड़ना फिरसे बिछड़ने के लिये मिलना,
आओ चलो सीखे कुदरत का ये खेल सुहाना.