कुछ तो लोग कहेंगे
कुछ तो लोग कहेंगे
रिश्तों की तहजीब जिन्होंने ना निभाई
देते हैं मुझको अब वो रिश्तों की दुहाई।
जब तक काम है खिलाएंगे तुमको यह मिठाई
फिर परत दर परत खुलती जाएगी इनकी सच्चाई।
एक औरत हूँ, एक औरत के एहसास समझती हूँ मैं
घूमने को जो निकलूँ, लोगों को आवारा लगती हूँ मैं।
खरीददारी करने जाऊँ, तब भी गुनाह करती हूँ मैं
लोगों की नजरों में बस पैसा ही बर्बाद करती हूँ मैं।
बच्चों को अपने पास बैठा प्यार से जो सहलाती हूँ
लोगों की नजरों में अतिसरंक्षित माँ मैं कहलाती हूँ।
जो दूर कर उनको डांट मैं लगाती हूँ
निष्ठुर और निर्दयी माँ मैं बन जाती हूँ।
सबकी पसंद का खाना हमेशा घर पर जो बनाऊँ
लोगों की नजरों में मितव्ययी फिर मैं कहलाऊँ।
जो कभी मगाऊँ बाहर से मैं खाना
खर्चीली का टैग लगाए यह जमाना।
गलत के खिलाफ जो आवाज उठाऊँ
संस्कारों की फिर मैं दुहाई पा जाऊँ।
चुप रहकर अगर अन्याय को सहन करती जाती हूँ
गलत का साथ देने वाली सबकी नजरों में कहलाती हूँ।
क्या कहें, क्यों और कैसा चलन है इस जमाने का
कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहने का।
इन्हें स्वयं से ज्यादा गैरों कि फिक्र है
इनकी बातों में बस हमारा ही जिक्र है।
खुशियों में आपकी, बेचारे दुखी हो जाते हैं
गम में आपके ये दिल से खुशी मनाते हैं।
इसलिए भूलकर सब बातें इनकी, तुम बेफिक्री से जीना
क्योंकि कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना।
