Nitish Sharma
Drama
आग - सी सीने में
जल रही
धुआंं कहीं
दिखे नहीं !
कुछ तो गलत है...!
कुछ तो गलत है
তবে আমার মনে একে একে ভিড় করছিল নানা পাওয়া না পাওয়ার মধ্যে আমাদের একসাথে পথ চলার কথাগুলো। তবে আমার মনে একে একে ভিড় করছিল নানা পাওয়া না পাওয়ার মধ্যে আমাদের একসাথে পথ চল...
मिट गया वजूद तेरा भी और मेरा भी, गर पता ही था तुझे अंजाम, तो फिर प्यार क्यों किया ? मिट गया वजूद तेरा भी और मेरा भी, गर पता ही था तुझे अंजाम, तो फिर प्यार क्यों ...
जब उठाई जिम्मेदारी अपने परिवार की तब लगा मुझे की अब मैं बड़ा हो गया हूँ। जब उठाई जिम्मेदारी अपने परिवार की तब लगा मुझे की अब मैं बड़ा हो गया ...
ना बेटी ना बेटा सिर्फ तुमने दोनो सा पाला है, ना छोड़कर जाऊंगी फैसला मैंने कर डाला है। ना बेटी ना बेटा सिर्फ तुमने दोनो सा पाला है, ना छोड़कर जाऊंगी फैसला मैंने कर ...
विश्वास के चेहरे पे जो कालिख मली गई ऋतू आई थी बसंत की आकर चली गई। विश्वास के चेहरे पे जो कालिख मली गई ऋतू आई थी बसंत की आकर चली गई।
आंसू नहीं है ये यही तो है सच्ची सहर। आंसू नहीं है ये यही तो है सच्ची सहर।
अनुत्तरित, असहाय उलझी हुई मैं, बेचारी बन रह जाती हूँ ! अनुत्तरित, असहाय उलझी हुई मैं, बेचारी बन रह जाती हूँ !
खाट लगे बिस्तर पर गहरी नींद में सो जाता हूं। खाट लगे बिस्तर पर गहरी नींद में सो जाता हूं।
चाहतों का कर के बलिदान लाल पर वार देती है न रखती है चाह भौतिक संसाधनों की। चाहतों का कर के बलिदान लाल पर वार देती है न रखती है चाह भौतिक संसाधनों की।
समय के साथ देता हमें अपडेटस हमें भी रखता अपटूडेट। समय के साथ देता हमें अपडेटस हमें भी रखता अपटूडेट।
बेटी तो ख़ुदा के दिल से निकली प्याली है। बेटी तो ख़ुदा के दिल से निकली प्याली है।
टूट न जाये ये सरगम बन्दगी के सामने। टूट न जाये ये सरगम बन्दगी के सामने।
जी हाँ अब मैं खद्दर परिधान में आप जैसा ही दिखता हूँ। जी हाँ अब मैं खद्दर परिधान में आप जैसा ही दिखता हूँ।
असली हिस्सा यही है तुम्हारा समय रहते जान जाओ। असली हिस्सा यही है तुम्हारा समय रहते जान जाओ।
इस सृष्टि को रचने वाली, सँवारने वाली होती हैं बेटियाँ। इस सृष्टि को रचने वाली, सँवारने वाली होती हैं बेटियाँ।
अंजाने में ही तुम लोगों ने मेरी अलग सी दुनिया बना दी। अंजाने में ही तुम लोगों ने मेरी अलग सी दुनिया बना दी।
ज़िन्दगी का सफर यूँ हुआ बसर, हंसे तो संग संग रोये तन्हा बैठ कर। ज़िन्दगी का सफर यूँ हुआ बसर, हंसे तो संग संग रोये तन्हा बैठ कर।
अब जनता ने मन्थन करने की ठानी है अपना मत विवेक से देने को भृकुटी तानी है। अब जनता ने मन्थन करने की ठानी है अपना मत विवेक से देने को भृकुटी तानी है।
विदाई के समय माथे पर तुम्हारे प्यार, गिरते हुए मां के आसुओं को। विदाई के समय माथे पर तुम्हारे प्यार, गिरते हुए मां के आसुओं को।
कलंकित होकर के, इस दुनिया में न रह पाऊँ ! कलंकित होकर के, इस दुनिया में न रह पाऊँ !