कुछ पल सुकून के मिलते नहीं
कुछ पल सुकून के मिलते नहीं
दिन रात मेहनत कर थक हार के भी,
बच्चों के सामने मुस्कुराता है पिता,
चार पैसा हाथ में नहीं फिर भी,
बच्चों की ख्वाहिशें पूरा करता है पिता,
फिर भी बुढ़ापे में बच्चों के ताने ही सुनता,
आखिर क्या कमी रह जाती एक पिता के प्यार दुलार में,
वो भी चाहता है बच्चे खूब लिखे पढ़ें नाम रोशन करें,
फिर भी क्यों बुढ़ापे में सहारे के लिए तरस जाता है पिता,
फिर सोच अपनी परवरिश में थी कोई कमी,
खुद के साथ कर लेता वो समझौता है,
सचमुच पिता जिसने सारी कमाई बच्चों पर लुटाई,
बुढ़ापे में एक एक पैसे का मोहताज हो जाता,
कुछ पल सुकून के मिलते नहीं थे जिस पिता को,
वो आज बुढ़ापे में अकेला दिन और रात काट रहा होता,
क्योंकि उसके पास बैठने वाला कोई नहीं होता,
बस वो उन दिनों को याद कर रो रहा होता,
सचमुच जो जीवन भर कमाता रहा,
बच्चों के खातिर दिन रात परिश्रम करता रहता,
आज वो पिता उन बच्चों के होते भी अकेला रह जाता,
और अकेले बैठकर अपनी जिंदगी को काट रहा होता।
